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Battle of Basantar: 1971 की वीरता और विजय की कहानी

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Battle of Basantar, ये नाम सुनते ही गर्व से दिल भर जाता है। इसे Battle of Shakargarh और Battle of Barapind भी कहा जाता है। ये लड़ाई 4 से 16 दिसंबर 1971 के बीच हुई थी और 1971 के भारत-पाक युद्ध का एक अहम हिस्सा थी। भारतीय सेना ने इस लड़ाई में अपनी बहादुरी और रणनीति से Pakistan की योजनाओं को पूरी तरह नाकाम कर दिया।

शकरगढ़- युद्ध का मैदान

शकरगढ़, जिसे "defender’s nightmare" कहा जाता है, भारत और पाकिस्तान की सीमा पर एक बेहद अहम क्षेत्र था। Basantar River, जो Ravi River की सहायक नदी है, यहीं से होकर बहती है।

भारत के लिए ये इलाका इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यह जम्मू और पंजाब को जोड़ने वाले मुख्य रोड लिंक के करीब था। अगर ये हाथ से निकल जाता, तो जम्मू-कश्मीर का भारत से संपर्क टूट सकता था। लेकिन भारतीय सेना ने ठान लिया था कि ये इलाका हर हाल में सुरक्षित रखना है।

युद्ध की शुरुआत

3 दिसंबर 1971 की शाम, पाकिस्तान ने भारत के एयरबेस पर हमला किया। इसके बाद, भारतीय सेना ने 4 दिसंबर को Shakargarh Sector में अपनी सेना तैनात कर दी।

जब भारतीय सेना ने आगे बढ़ना शुरू किया, तो उन्हें दुश्मन द्वारा बिछाए गए खतरनाक minefields का सामना करना पड़ा। लेकिन T-55 Tanks और इंजीनियर्स की मदद से रास्ता साफ किया गया।

अरुण खेतरपाल- एक सच्चे हीरो की कहानी

इस लड़ाई की सबसे प्रेरणादायक कहानी है 2nd Lieutenant Arun Khetarpal की। 21 साल के अरुण 17th Poona Horse Regiment का हिस्सा थे।

जब उन्हें खबर मिली कि दुश्मन की 8th Armoured Brigade ने हमला शुरू कर दिया है, तो उन्होंने बिना देर किए अपनी टैंक टुकड़ी को लेकर मोर्चा संभाल लिया। अरुण और उनकी टीम ने दुश्मन के 10 टैंकों को नष्ट कर दिया।

लेकिन इस दौरान अरुण का टैंक भी दुश्मन की गोलीबारी का शिकार हुआ। घायल होने के बावजूद, उन्होंने अपने कमांडर को साफ शब्दों में कहा, "मैं अपनी पोस्ट नहीं छोड़ूंगा।" आखिरी दम तक लड़ते हुए अरुण खेतरपाल ने वीरगति प्राप्त की। उनकी बहादुरी आज भी हर भारतीय को गर्व से भर देती है।

युद्ध का अंतिम दौर

15 दिसंबर की रात, पाकिस्तान ने बड़े पैमाने पर counter-attacks की योजना बनाई। लेकिन भारतीय सेना पहले से तैयार थी।

दुश्मन ने bridgehead पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना ने हर हमले को नाकाम कर दिया। Lieutenant Colonel Akram Raja ने अपनी टैंक ब्रिगेड के साथ हमला किया, लेकिन भारतीय सेना की मजबूत रणनीति और साहस ने उनकी हर कोशिश को विफल कर दिया।

विजय की कहानी

16 दिसंबर 1971 की सुबह, भारतीय सेना ने न केवल शकरगढ़ को सुरक्षित किया, बल्कि दुश्मन के बेस Sialkot के पास तक पहुंच गई। पाकिस्तान को इस हार के बाद ceasefire के लिए मजबूर होना पड़ा।

इस लड़ाई में भारतीय सेना ने 1000 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा का क्षेत्र और लगभग 500 गांव अपने कब्जे में ले लिए।

बासन्तर की लड़ाई की खास बातें

  • सभी सेनाओं का तालमेल: यह लड़ाई all arms battle का बेहतरीन उदाहरण थी। आर्टिलरी, टैंक्स, इंजीनियर्स और इन्फैंट्री ने मिलकर पाकिस्तान को हराया।
  • 9 Engineer Regiment: इन सैपर्स ने minefields को साफ कर भारतीय टैंकों के लिए रास्ता बनाया।
  • 75 Medium Regiment: इनकी आर्टिलरी सपोर्ट ने दुश्मन की योजनाओं को तहस-नहस कर दिया।

अरुण खेतरपाल और अन्य वीरों को सलाम

इस लड़ाई में कई नाम अमर हो गए। 2nd Lieutenant Arun Khetarpal, Captain JDS Jind, और Captain Satish Chander Sehgal जैसे वीरों ने अपने बलिदान से भारत की विजय सुनिश्चित की।

निष्कर्ष

Battle of Basantar सिर्फ एक लड़ाई नहीं थी। ये बहादुरी, रणनीति और बलिदान की वो गाथा है, जिसने भारतीय सेना को इतिहास में अमर कर दिया।

जब भी हम इस लड़ाई को याद करते हैं, दिल में एक ही ख्याल आता है – "अगर हमारे सैनिक न होते, तो आज हम ये आजादी महसूस नहीं कर रहे होते।"

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